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Dehradun: मियांवाला पर छिड़ा विवाद, जानें क्या है उसका इतिहास…

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में 15 जगहों के नाम बदलने की घोषणा की। सरकार का कहना है कि यह निर्णय स्थानीय लोगों की भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखकर लिया गया है। जिससे लोग भारतीय संस्कृति और इसके संरक्षण में योगदान देने वाले महापुरुषों से प्रेरणा ले सकें। लेकिन देहरादून नगर निगम के मियांवाला का नाम रामजीवाला किए जाने पर बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। वैसे मियांवाला नाम हमारे इतिहास से जुड़ा हुआ है।

“मिया” शब्द का इतिहास !

उत्तराखंड में “मिया” शब्द का प्रयोग मुख्यतः हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले कुछ क्षत्रिय राजपूत परिवारों के लिए किया जाता है, जिन्हें “मियां राजपूत” या “मियां क्षत्रिय” भी कहा जाता है।

ये भी कहा जाता है की गुलेर रियासत के लोगों को “मियां” की सम्मानजनक उपाधि से नवाजा गया था, जो उस समय की बोलचाल और परंपरा में प्रचलित हो गया। प्रदीप शाह के शासनकाल से ही गुलेरिया लोग अपने रिश्तेदारों के साथ गढ़वाल आने लगे थे। इन लोगों को “डोलेर” भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है कि वे दुल्हन रानी की डोली के साथ-साथ गढ़वाल आए थे।

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार और पुरातत्वविद, पद्मश्री डॉ. यशवंत सिंह कटोच, भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मियांवाला जागीर का नाम गढ़वाल की राजपूत जाति के गुलेरिया लोगों की पदवी नाम पर पड़ा। उनके अनुसार, यह जागीर इन लोगों को उनके योगदान और रिश्तेदारी के सम्मान में दी गई थी।

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“मिया” नाम कहाँ से आया ?

“मियां” नाम का मूल हिंदी और उर्दू भाषाओं से जुड़ा हुआ है और यह आमतौर पर मुस्लिम समुदाय में प्रयोग होता है। “मियां” शब्द मूलतः अरबी, फारसी और उर्दू भाषाओं से आया है, जहाँ इसका अर्थ “श्रीमान” या “महाशय” होता है, जो किसी व्यक्ति के प्रति सम्मान या आदर व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।  इसका इस्तेमाल अक्सर किसी व्यक्ति के प्रति आदर या सम्मान दिखाने के लिए किया जाता है।  “मियां” को कभी-कभी एक उपनाम या व्यक्तिगत नाम के रूप में भी देखा जाता है, खासकर मुस्लिम समुदाय में। इतिहास में भी देखे तो यह मुगल काल में भी प्रचलित था, जहाँ इसे रईसों या सम्मानित लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था। देहरादून में मियांवाला नाम का इतिहास भी इसी से जुड़ा है, जहाँ यह नाम गुलेरिया लोगों को दी गई एक सम्मानजनक उपाधि थी.

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